गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

9, आकांक्षा यादव व उनकी लघुकथाएं:

पाठकों को बिना किसी भेदभाव के अच्छी लघुकथाओं व लघुकथाकारों से रूबरू कराने के क्रम में हम इस बार श्रीमती आकांक्षा यादव  की लघुकथाएं उनके फोटो, परिचय के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है पाठकों को श्रीमती आकांक्षा की लघुकथाओं व उनके बारे में जानकर अच्छा लगेगा।-किशोर श्रीवास्तव 

परिचय:   

                            आकांक्षा यादव
30 जुलाई, 1982 को सैदपुर (गाजीपुर, उ.प्र.) के एक प्रतिष्ठित परिवार में श्री राजेंद्र प्रसाद और श्रीमती सावित्री देवी की सुपुत्री-रूप में जन्म। आरंभिक शिक्षा राजकीय बालिका इंटर कॉलेज, सैदपुर (गाजीपुर) में एवं तत्पश्चात पी. जी. कॉलेज, गाजीपुर से वर्ष 2003 में एम.ए. (संस्कृत)। 28 नवम्बर, 2004 को भारतीय डाक सेवा के अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव से विवाह।

कॉलेज में प्रवक्ता के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लागिंग के क्षेत्र में भी चर्चित नाम। कविता, लघुकथा और लेख विधा में निरंतर सृजन. नारी विमर्श, बाल विमर्श और सामाजिक मुद्दों से सम्बंधित विषयों पर प्रमुखता से लेखन। देश-विदेश की शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं - इण्डिया टुडे, कादम्बिनी, नवनीत, साहित्य अमृत, वर्तमान साहित्य, अक्षर पर्व, अक्षर शिल्पी, युगतेवर, अहा जिंदगी, आजकल, उत्तर प्रदेश, मधुमती, हरिगंधा, पंजाब सौरभ, हिमप्रस्थ, दैनिक जागरण, जनसत्ता, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, स्वतंत्र भारत, दैनिक आज, राजस्थान पत्रिका, अजीत समाचार, वीणा, परती पलार, हिन्दी चेतना (कनाडा), भारत-एशियाई साहित्य, शुभ तारिका, शोध दिशा, सरस्वती सुमन, समय के साखी, राष्ट्रधर्म, हरसिंगार, अपरिहार्य, नव निकष, नूतन भाषा-सेत, संकल्य, प्रसंगम, पुष्पक, गोलकोंडा दर्पण, हिन्दी प्रचार वाणी, हिन्दी ज्योति बिंब, मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद पत्रिका, केरल ज्योति, भारतवाणी, भाषा स्पंदन, श्री मिलिंद, द्वीप लहरी, प्रेरणा भारती (असम) इत्यादि में रचनाएँ प्रकाशित। कनाडा से प्रकाशित हिन्दी चेतना‘ (त्रै0) की अंडमान-निकोबार प्रतिनिधि।
दर्जनाधिक प्रतिष्ठित पुस्तकों/संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। क्रांति-यज्ञ 1857-1947 की गाथा‘ (2007) पुस्तक का कृष्ण कुमार यादव जी के साथ संपादन। आकाशवाणी से समय-समय पर रचनाएँ प्रसारित।

इंटरनेट पर विभिन्न वेब पत्रिकाओं, ब्लॉग- अनुभूति, सृजनगाथा, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, वेब दुनिया हिंदी, रचनाकार, ह्रिन्द युग्म, हिंदीनेस्ट, हिंदी मीडिया, हिंदी गौरव, लघुकथा डाट काम, परिकल्पना ब्लॉगोत्सव, उदंती डाट काम, कलायन, स्वर्गविभा, हमारी वाणी, स्वतंत्र आवाज डाट काम, कवि मंच इत्यादि पर रचनाओं का निरंतर प्रकाशन।

व्यक्तिगत रूप से शब्द-शिखर’ (http://shabdshikhar.blogspot.com/) और युगल रूप में बाल-दुनिया’ (http://balduniya.blogspot.com/), ‘सप्तरंगी प्रेम’ (http://saptrangiprem.blogspot.com/) उत्सव के रंग’ (http://utsavkerang.blogspot.com/) ब्लॉग का संचालन। विकीपीडिया पर भी तमाम रचनाओं के लिंक्स उपलब्ध। व्यक्तित्व-कृतित्व पर डा. राष्ट्रबंधु द्वारा सम्पादित बाल साहित्य समीक्षा’ (नवम्बर 2009, कानपुर) का विशेषांक जारी। विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि। भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मानवीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा भारती ज्योति’, ‘एस0एम0एस0‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु दर्जनाधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त। रुचियाँ- रचनात्मक अध्ययन, लेखन, ब्लागिंग और संगीत सुनना।

एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास. बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही आकांक्षा यादव की लेखनी की शक्ति है.

संपर्क: आकांक्षा यादव द्वारा-श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवा, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101
ई-मेलः kk_akanksha@yahoo.com

लघुकथाएं:

                                                 भिखारी


वह एक माडर्न लड़की थी। बन-संवर कर निकलती तो न जाने कितनों की निगाह उस पर ठहर जाती। कमर से थोड़ा नीचे तक लटकी जीन्स, नाभि के ऊपर तक टाप, होठों पर गहरी लिपिस्टिक और आँखों पर काला चश्मा....हर कोई उसके तराशे बदन को देखता और आह भरकर रह जाता।
पेशे से वह बार डांसर थी पर इसी बहाने उसकी नजर लोगों के पर्स पर भी लगी रहती थी। यदि कोई ग्राहक पट जाता तो उसके साथ रात गुजारने में भी वह गुरेज नहीं करती। गरीबी को उसने इतने नजदीक से देखा था कि उसके जीवन का ध्येय ही ढेर सारे पैसे कमाना हो गया था। इसीलिए कभी भी उसने न तो अपने ग्राहक की सूरत देखी व न सीरत। बस देखा तो उसका मोटा पर्स।

आज वह बहुत खुश थी। शहर का एक जाना-माना बिजनेसमैन उसका ग्राहक बना था। शराब के नशे में लड़खड़ाती वह ज्यों ही अपने घर जाने के लिए उस बिजनेसमैन के बंगले से निकली तो सड़क के किनारे बैठे भिखारी ने पूछ लिया- मेरे साथ चलोगी ?”

....
इतना सुनते ही उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया- अबे भिखारी! अपनी औकात देखी है। एक पाँव से लंगड़ा होकर उसी के नाम पर दिन भर लोगों को बेवकूफ बनाकर पैसे ऐंठता है। तू समाज के नाम पर कलंक है।

”.......
ऐ लड़की, गाली नहीं दे। तेरी औकात ही किस भिखारी से ज्यादा है?”

”......
तुम्हें मैं भिखारी लगती हूँ। मेरी चाल-ढाल देखकर अच्छे-अच्छे भिखारी बन जाते हैं।

”..........
बहुत आई चाल-ढाल वाली। हो तो एक गिरी हुई औरत ही। फर्क मात्र बस  इतना है कि मैं अपने कटे हुए पांव की दुहाई देकर लोगों से पैसे मांगता हूँ और तुम अपने भरे-पूरे जवान शरीर का सब्जबाग दिखाकर।

                                                  बच्चा


इन बच्चों को भी कौन समझाये? सारा सामान उलट-पुलट कर रख दिया है। उधर संपादक भी रट लगाए है कि इसी महीने उसे बाल कविताएं चाहिए ताकि अगले अंक में बाल-दिवस पर प्रकाशित कर सके। एक-एक लाइन लिखने में कितना दिमाग खपाना पड़ता है, पर लय है कि बनती ही नहीं।

........
अजी, सुन रही हो- एक कप चाय तो पिला दो।अब कुछ मूड बन रहा है लिखने का- बच्चों पर लिखना कितना रोचक लगता है आखिर वे इतने भोले व मासूम होते हैं। जग की सारी खुशियाँ उनकी किलकारियों से जुड़ी होती है।

इस बीच पत्नी मेज पर चाय रखकर जा चुकी थी। वह अपनी बाल-कविता की लय बनाने में मशगूल थे। तभी उनके छोटे पुत्र बाहर से खेलकर आए और आते ही पापा की गोद में लपक पड़े। इधर साहबजादे पापा की गोद में लपके और उधर सारी चाय उनकी बाल कविता पर गिरकर फैल गई।

अपनी बाल कविता के इस हश्र पर उन्होंने आव देखा न ताव और तड़....तड़......तड़ कर तीन-चार थप्पड़ बेटे के गाल पर जड़ दिए। पापा के इस व्यवहार पर बेटा जोर-जोर से रोने लगा।

अब वे पत्नी पर बड़बड़ा रहे थे- एक बच्चे को भी नहीं संभाल सकती। घर में बैठकर क्या पता कि एक कविता लिखने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है।

सकपकायी हुई पत्नी कभी बच्चे का चेहरा देखती तो कभी पति महोदय की बाल कविता।